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दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर मंदिर, उज्जैन, मध्य प्रदेश

दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर मंदिर, उज्जैन, मध्य प्रदेश

 

April 19, 2018 By admin Leave a Comment


भारत के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर (Mahakaleshwar Jyotirlinga) उज्जैन शहर में स्थित है। उज्जैन की पश्चिम दिशा में शिप्रा नदी प्रवाहमान है। जहां हर बारह वर्ष में कुंभ का मेला लगता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार पश्चिम दिशा में भूमिगत पानी का स्रोत धार्मिकता बढ़ाता है। इसी कारण उज्जैन शहर धार्मिक नगरी के रूप में ज्यादा प्रसिद्ध है और इस शहर की प्रसिद्धि को और अधिक गौरवान्वित करता है महाकालेश्वर मंदिर।

उज्जैन शहर की समृद्धि एवं प्रसिद्धि में इस मंदिर का भी महत्त्वपूर्ण योगदान है। आखिर इस मंदिर में ऐसी क्या कशिश है जो भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी बहुत बड़ी संख्या में दर्शनार्थी यहां दर्शन के लिए आते हैं और मन्नते मांगते हैं?

महाकालेश्वर मंदिर के प्रति लोगों की इतनी श्रद्धा और आस्था का कारण है इस स्थान की भौगोलिक स्थिति एवं मंदिर भवन का भारतीय वास्तुशास्त्र और चीनी वास्तुशास्त्र फेंगशुई दोनों के सिद्धान्तों के अनुरूप बना होना।

भारतीय वास्तुशास्त्र के अनुसार पूर्व दिशा में ऊंचाई होना और पश्चिम दिशा में ढलान व पानी का स्रोत होना अच्छा नहीं माना जाता है, परन्तु देखने में आया है कि ज्यादातर वो स्थान जो धार्मिक कारणों से प्रसिद्ध है, चाहे वह किसी भी धर्म से सम्बन्धित हो, उन स्थानों की भौगोलिक स्थिति में काफी समानताएं देखने को मिलती हैं।

ऐसे स्थानों पर पूर्व की तुलना में पश्चिम में ढलान होती है और दक्षिण दिशा हमेशा उत्तर दिशा की तुलना में ऊंची रहती है। उदाहरण के लिए वैष्णो देवी मंदिर जम्मू, पशुपतिनाथ मंदिर मंदसौर इत्यादि। वह घर जहां पश्चिम दिशा में भूमिगत पानी का स्रोत जैसे भूमिगत पानी की टंकी, कुंआ, बोरवेल इत्यादि होता है। उस भवन में निवास करने वालों में धार्मिकता दूसरों की तुलना में ज्यादा ही होती है।

महाकालेश्वर मंदिर का वास्तु एवं फेंगशुई विश्लेषण इस प्रकार है:

वास्तु के सिद्धान्त:

[dropcap]1[/dropcap]टीले पर स्थित महाकालेश्वर मन्दिर परिसर के पश्चिम भाग में जलकुण्ड है, मन्दिर परिसर के बाहर पश्चिम दिशा में ही रुद्रसागर है पश्चिम दिशा में ही थोड़ा-सा आगे जाकर शिप्रा नदी भी है इसलिए यह स्थान धार्मिक रूप से प्रसिद्ध है।

[dropcap]2[/dropcap]इस मंदिर भवन के चारों दिशाओं में सड़क है। उत्तर दिशा में हरसिद्धि मंदिर की ओर जाने वाली सड़क पूर्व से पश्चिम की तरफ काफी ढलान लिए हुए है। पश्चिम दिशा में दक्षिण से उत्तर की ओर ढलान लिए हुए सड़क है।

[dropcap]3[/dropcap]मंदिर भवन के अन्दर उत्तर दिशा वाला भाग भी दक्षिण दिशा वाले भाग जहां वृद्धेश्वर महाकाल एवं बाल हनुमान मंदिर है कि तुलना में काफी नीचा है।

[dropcap]4[/dropcap]मंदिर भवन का मुख्य द्वार पूर्व दिशा में वास्तुनुकूल स्थान पर स्थित है। गर्भगृह वह स्थान जहां भगवान् महाकाल विराजमान हैंं का द्वार दक्षिण दिशा में वास्तु सम्मत स्थान पर ही स्थित है। वास्तु सिद्धान्त के अनुसार दक्षिण का द्वार वैभवशाली माना जाता है।

फेंगशुई के सिद्धान्त:

फेंगशुई का एक सिद्धान्त है कि यदि पहाड़ के मध्य में कोई भवन बना हो, जिसके पीछे पहाड़ की ऊंचाई हो, आगे की तरफ पहाड़ की ढलान हो और ढलान के बाद पानी का झरना, कुण्ड, तालाब, नदी इत्यादि हो, ऐसा भवन प्रसिद्धि पाता है और सदियों तक बना रहता है। फेंगशुई के इस सिद्धान्त में दिशा का कोई महत्त्व नहीं है। ऐसा भवन किसी भी दिशा में हो सकता है। चाहे पूर्व दिशा ऊंची हो और पश्चिम में ढलान के बाद तालाब हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। फेंगशुई के इस सिद्धान्त का सुन्दर उदाहरण महाकालेश्वर मंदिर है। मंदिर की पूर्व दिशा में ऊंचाई है, उसके बाद नीचे जाने पर मंदिर का प्रांगण है। इस प्रांगण के और थोड़ा नीचे पश्चिम दिशा की ओर महाकालेश्वर मंदिर का गर्भगृह है। गर्भगृह के आगे पश्चिम दिशा में मंदिर के अन्दर बड़ा कुण्ड है जिसे कोटितीर्थ कुण्ड कहते हैं। मंदिर के बाहर पश्चिम दिशा में बहुत बड़ा तालाब रुद्रसागर है और उसके आगे जाकर पश्चिम दिशा में ही शिप्रा नदी बह रही है। इस प्रकार यह महाकालेश्वर मंदिर फेंगशुई के इस सिद्धान्त के अनुरूप भी है।

वैसे तो वास्तु-फेंगशुई की अनुकुलता के कारण महाकालेश्वर भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर में प्रसिद्ध है, लेकिन बाबा महाकाल के दर्शन करने की व्यवस्था वास्तुनुकूल नहीं है। वर्तमान में दर्षनार्थियों को मुख्य द्वार से गर्भगृह के द्वार तक और वहां से बाहर जाने तक एण्टी क्लाक वाईज गलियारे से होकर दर्शन करने होते हैं। यदि दर्शन करने की इस व्यवस्था को क्लाक वाईज कर दिया जाए तो यह बदलाव वास्तुनुकूल होकर अत्यन्त शुभ होगा। इस बदलाव से दर्शन व्यवस्था सुव्यस्थित एवं सुविधाजनक तो होगी ही, साथ ही यह परिर्वतन दर्षनार्थियों को ओर अधिक आकर्षित करने में सहायक होगा।

महाकालेश्वर मन्दिर परिसर के ईशान कोण में ऊंचाई और कटाव है और नैऋत्य कोण में तीखा ढ़लान के साथ बढ़ाव भी है। यह महत्त्वपूर्ण वास्तुदोष है। इसी कारण समय-समय यहां किसी ना किसी हादसे में जान-माल की हानि होती रहती है। मन्दिर में बढ़ती दर्शनार्थियों की संख्या के कारण दर्शनार्थियों की सुविधा के लिए निर्माण कार्य किए जा रहे हैं, जिनमें से कुछ वास्तुनुकूल नहीं है। जैसे दर्शन के लिए बन रही महाकल टनल आग्नेय कोण में दोषपूर्ण स्थान पर बन रही हैं जो कि समय-समय पर विवाद और अनहोनी का कारण बनेगी यह तय है।

~ वास्तु गुरू कुलदीप सलूजा [thenebula2001@yahoo.co.in]

 

Filed Under: Hindu Temples Tagged With: Ancient Hindu Temples of Lord Shiva in India, Ancient Hindu Temples of Lord Shiva in Madhya Pradesh, Ancient Hindu Temples of Lord Shiva in Ujjain, Famous Hindu Temples of Lord Shiva in India, Famous Hindu Temples of Lord Shiva in Madhya Pradesh, Famous Hindu Temples of Lord Shiva in Ujjain, Hindu Holy Places in India, Hindu Holy Places in Madhya Pradesh, Hindu Holy Places in Ujjain, Hindu Religious Places in India, Hindu Religious Places in Madhya Pradesh, Hindu Religious Places in Ujjain, Lord Shiva Temples in India, Lord Shiva Temples in Madhya Pradesh, Lord Shiva Temples in Ujjain

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